गाम और आम
खलिहान से लाइव
कल की बरसात के बाद गाँव काफी खूबसूरत हो गया है, प्रकृति बेहद प्यासी थी, पत्तियाँ जल गयी थी, पौधे झुलस-से गये थे | कल मौसम का मिजाज बदला, रात काफी काली हो गयी, बादल गरजने लगे, बिजली कड़कने लगी, पवन की रूहानी संगीत में गुलमोहर झुमने लगा | आम-लीची प्रेम-गीत गुनगुनाने लगे | प्रकृति का रोमांस देखने लायक था, बरामदे में निकलकर प्रकृति के इस जश्न में शरीक होने की इच्छा हुई, मदमस्त ठंडी हवाओं ने इतनी शैतानी से छुआ कि पूरा बदन सिहर सा गया, रोंए कांटे की तरह-उग से गये |
सुबह टहलने निकला तो देखा वो तीन साल का जर्दालू का बच्चा मुस्कुरा रहा है, अभी-अभी कुछ नव पल्लव लगे हैं उसमें | अपनी उम्र के हिसाब से कहीं अधिक समझदार और परिपक्व है | इतनी छोटी उम्र में भी मेरे लिए ढेर सारा फल लाया है | मुझे याद है, जर्दालू एक साल का था जब बाबूजी इसे नर्सरी से लाये थे, अभी लगाये ही थे कि एक रात किसी ने इसकी सर को तोड़ दिया, काफ़ी रोया था मैं, जर्दालू भी रो रहा था, भला इस पेड़ से क्या दुश्मनी, नहीं पसंद था मुझे बताते, मैं कहीं और लगाता | काकाजी ने समझाया कि उदास मत हो, अभी जर्दालू के एक सर थे, अब ४ सर होंगे और यह खूब सारा जगह लेकर बढ़ेगा…| वही हुआ, कुछ ही दिन में नया फुनगी निकला और जर्दालू फिर से मुस्कुराने लगा |
जर्दालू के ठीक पीछे इसका बड़ा भाई गुलाबखास है, २०-२२ बरस का होगा | बाबूजी इसे बड़ी दूर से कंधे पर लादकर लाये थे | वहीं बगल में लीची भी है, पुरे बगान में कुल ३४ पेड़ हैं पर रौनक आजकल इन्हीं तीनों की जुगलबंदी से है | मेरे अहाते के द्वार पर तीनों सर झुकाए स्वागत को तैयार थे, पगडंडी गुलमोहर के पुष्प-वर्षा में लाल चादर सी लग रही थी | मैंने मुस्कुरा कर कहा- ‘राजा भी क्या इतना झुक कर रहता है ?’
उनकी ख़ामोशी में ही जबाब था | शायद मनुष्य मात्र ही ईश्वर की सबसे विकृत रचना है, अब इन पेड़-पौधों को देखो, जितना फल लगता है, उतना झुक जाते हैं और मनुष्य इसे काटने में जड़ा भी नही हिचकिचाता |
बगीचे में टहलने का अलग ही आनंद है, और आम के मौसम में बगीचे में जितनी सकारात्मक उर्जा होती है शायद आपने कहीं ऐसा एहसास नही किया होगा | एक खटिया सरकाओ और गोधूली के अँधेरे में इनकी बातों को सुनो या रात के आखिरी पहर में जागते पंछियों के चहचहाहट में इनकी अंगराइयों को देखो, आपको पक्का इनसे इश्क हो जाएगा | जून में जब हल्की सी हवा पर राजा साहब पीले-पके फल आपके सर या झुकी पीठ पर गिराते हैं तो आपकी आह पर इनकी खिलखिलाहट गजब का होता है |
पुराना वो बिज्जू बड़ा खामोश था, धूप में काला हो गया है या गुस्से में ऐसा काला लग रहा था पता नहीं | मैं थोड़ा नजदीक गया, पता चला इसकी शिकायतों की लिस्ट काफी लंबी है | लोग सिर्फ फल लेने के लिए आते हैं, बाकि वक़्त कोई ताकता भी नही है | खुद से खाना बना लो तो ठीक वरना मरो, बीमारी में भी किसी को कोई परवाह नहीं | बस फल लेना रहा तो तरह-तरह के विटामिन डालने लगे, दुश्मनों से रक्षा के नाम पर मुझे जहर से नहला-नहलाकर सारे लाल चींटी को मार दिये, अब इनका जहर तो ४ ही महीने मुझे बचाता है, बाकि समय तो वही बचाता था पर किसे फिक्र है | मनुष्य है तो स्वार्थी तो होगा ही |
बात सोलह आने सही थी | वादा किया उसकी बात को आप तक पहुँचाने का और कुछ लाल चींटी ढूंढ़कर ला दिया |
दालान की तरफ आया तो देखा बाबूजी सब्जी बाड़ी में खुरपी चला रहे हैं | बाबूजी हमेशा गाँव में ही रहे, उनके बचपन गुजरने से पहले जमींदारी जा चुकी थी, जमीन के नाम पर सिर्फ घर बचा था, कुछ ८-१० कट्ठे गिरवी थे, काकाजी को नौकरी लगी तो गिरवी छुड़ाया गया | तंगी का दौर था, ना पैसे थे ना खेत-पथार-बाग-बगीचे थे | धीरे-धीरे बाबूजी पेड़ लगाना शुरू किये, आम-लीची-कटहल और भी ढेर सारे फल | पुरे १०० पेड़ हैं आम के और किसी को रोकते नहीं हैं, जिसको फल खाना है आकर तोड़ लेता है | शायद अपना पेड़ नहीं होने पर दुसरे की नजर और दुत्कार के दर्द का एहसास है उन्हें | माँ-बाबूजी को शहर पसंद नहीं है | कई बार बुलाता हूँ पर उन्हें वहीं जंगलों के बीच सुकून मिलता है |
“मौसम को देखकर हाड़ गया था पर अब लगता है कि कुछ होगा | कद्दू-खीरा लगा देते हैं…”,
“कुछ भिन्डी और घीरा भी लगा लीजिये, सुना है इस साल काफी बारिश होगी तो बाढ़ भी आ सकता है, भिन्डी-घीरा पानी लगने पर भी सब्जी देगा |”
माँ मुस्कुरा रही थी- “इतनी फिक्र है गाम-घर की तो शहर छोड़ क्यूँ नही देते ?”
“जिस दिन जबाब मिल जाएगा, लौट आऊंगा माँ…”
Tunnu bhai ahanke ehi manohaari rachna se hamar mon gad gag bha gel, asha karai chhi je ahan din pratidin apn lekhni ke shakti ke aur teekshna kari evam ehen aur rachna ke sabhak samaksh prastut karait rahi.