सत्य बकर
सत्य बकर
आज भादव का तेरस है, आज के दिन गांव के लोग महादेव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं । मैं पकरी दयाल में हूँ और यहां पिछले एक महीने से तैयारी हो रही थी । सुबह 3 बजे से 1500-2000 महिला-पुरुष-बच्चे 3 घंटे प्रतिदिन टहलते थे । पर आज सोमेश्वर महादेव को जल चढाते ही यह दृढ़-निश्चय ख़त्म हो जाएगा । कल से एक-आध लोग ही टहलते मिलेंगे ।
पूरा माहौल भक्तिमय है, सोमेश्वर महादेव स्थान अरेराज में है, यहां से 55 किलोमीटर पैदल की दूरी है । तक़रीबन 2000 लोग कल शाम में यहां दौड़ते हुए गये हैं, इन्हें डाकबम कहते हैं । इन्होंने 8 घंटे में पहुँचने का संकल्प लिया है । सभी पुरुषों का वस्त्र एक सा है, उजला गंजी, उजला पैंट और उजला गमछा । गंजी पर डाक बम, पकरी दयाल छपा हुआ है । सब एक जगह एकत्रित होकर पूजा किये, संकल्प लिए और फिर दौड़ पड़े । एक विद्यालय के आलय में इनके पूजा करने का पूरा इंतजाम किया गया था, पंडित जी माइक पर मंत्रोच्चार कर रहे थे….पृथ्वी शांतिः…ॐ शांतिः….। बड़ा खूबसूरत सजावट किया गया था, इन्हें पुरे हर्षोल्लास से विदा करने के लिए हजारों लोगों की भीड़ थी ।
चारो तरफ इलाका हर हर महादेव के जयकारों से गूंज रहा था । इनके साथ सहायक बम भी हैं, जो इन कावरियों के पीछे ऑटो से, बोलेरो-स्कार्पियो से पीछे पीछे फल, पानी इन कावरियों के लिये लेकर चल रहे हैं । कुछ युवा भक्त फटफटिया से बाबा से मिलने गए हैं ।
सड़क के दोनों तरफ आस -पास के गांव के बच्चे पानी, केला और सेब लेकर खड़े थे और वो भी इन डाक बमों के साथ कुछ देर तक दौड़ जाते थे, जो लोग सुखी-संपन्न हैं या व्यवसायी हैं उन लोगों ने जगह जगह पर जेनरेटर लगाकर पूरे रास्ते में रौशनी का प्रबंध कर दिए थे, साथ ही बड़े बड़े बुफर लगे साउंड बॉक्सों से बोलबम के गानों से माहौल भक्तिमय था । मैं भी इस अनोखे सामाजिक प्रेम और सौहाद्र का प्रमाण बनने बाइक से कुछ देर तक पीछे पीछे गया । सब जगह वही प्रेम, सम्मान और सहयोग की भावना दिखी । बाज़ार आज बंद है, सभी इस सेवा धर्म में व्यस्त हैं । अख़बार से पता चला है कि 25 अस्थायी स्वास्थ्य केंद्र भी पुरे रास्ते में बनाया हुआ है । अनुमान है कि आज सोमेश्वर महादेव को 1.5 लाख लीटर जल चढ़ाया गया होगा ।
धर्म मात्र के नाम पर यह नज़ारा कमोवेश बिहार में हर गांव-शहर में देखने को मिलता है।
हमारा राजधानी तो इसमें बहुत आगे है ।
आपने सुना होगा पटना सफाई के मामले में बड़ा गंदा शहर है । गली, नुक्कड़, चौक, चौराहा हर जगह कचड़े का अंबार मिलेगा…नगर-निगम वाले उठा कर ले जाते है और आधे-एक घंटे में फिर से ढेर लग जाता है । कई घर पटना में कचड़ों के ढेर पर बने हैं । गांव में सड़क किनारे जैसे गैरमजरूआ या खाली जमींन पर लोग कठघरा बिठा कर पान दुकान लगा लेते हैं ऐसे ही पटना में खाली प्लॉट को कचड़ा-गाह बना देते हैं । गल्ली-मोहल्लों या सड़क किनारे गरी लाइटें तो शायद ही कहीं कोई जलती है तो लोग अँधेरे का फायदा उठाकर रोड पर भी कचड़ा फेंक देते हैं, कभी घूमते वक़्त आपके सर पर किसी बिल्डिंग से पानी, कचड़ा या पान की पीक गिरे तो आश्चर्य नहीं किजियेगा । आपको पटना घूमना हो तो कभी छठ में आइए । दिवाली के अगले दिन से यहां के लोग जिम्मेदार हो जाते हैं, हर जगह साफ़-सफाई होता है और यह कोई सरकारी कर्मचारी ही नहीं करता, यहां के लोग मिलकर करते हैं । पूरा शहर खूबसूरत सजावटों के संग प्रकाशमान रहता है । छठ के दो दिन पूर्व से छठ दिन तक मतलब पुरे चार दिन आप पटना में कहीं भी जमींन पर बैठकर खाना खा सकते हैं, आपको घिन्न नहीं आएगी ।
अब आप बताओ जो मनुष्य धर्म के नाम पर 7 दिन में पूरा शहर सुन्दर बना देता है वो अगर चाहे तो क्या 365 दिन एक शहर खूबसूरत नहीं लग सकता ?? जो लोग एक दिन 55 किलोमीटर चलकर शिव-दर्शन के लिए पूरे एक महीने 3 घंटे सुबह सुबह ताज़ी हवा में टहल सकता है क्या वो 365 दिन नहीं टहल सकता ? क्या होगा अगर ऐसा हुआ तो? मधुमेह, रक्तचाप, मलेरिया जैसी कोई बीमारी किसी को होगी?
पर किसी को इतनी फुरसत कहाँ, ये तो ऊपरवाले की महिमा है हो जाता है ।
थोड़ा सोचिये… ये दो जगह का वाकया है, ऐसे कुछ ना कुछ हर जगह है…बाकि सब ऊपरवाले की माया है ।
बहुत अच्छा उदाहरण सामने रखा।