गुप्तगू
मैं सब देखता हूँ तुम दोनों मकई के खेत में सरसों की आड़ लेकर क्या गुप्तगू करते रहते हो….कभी आम के पेड़ पर, कभी अरहर में छुपकर….कल तो तुमने हद ही कर दी थी जब तुम गन्ने के खेत में आशिकी फरमा रहे थे….माना मैं सड़क किनारे खड़ा होकर गेहूँ की रखवाली कर रहा…पर मेरी नज़र बहुत तेज है, सब देख लेता हूँ मैं….वैसे उसके बालों जो सरसों के कुछ फूल उलझे से थे और वो खिलखिलाती हुई मेड पर दौरते हुए हाथों को फैलाये संतुलन बना रही थी… बड़ी अच्छी लग रही थी… जैसे चाँद सितारों के बीच मुस्कुरा रहा हो…कुछ गुनगुना रहा हो…दिल हल्दी-हल्दी हो गया |
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