खलिहान से लाइव – 56 इंच सीना
खेती-किसानी सुनते-बतियाते हमें अक्सर सुदूर देहातों में घूमने का मौका मिलता है, कई तरह की भाषाएं सिखने को मिलती है, कई क्षेत्रीय रीति-रिवाजों को जानने-समझने का मौका मिलता है । हम अपनी मिट्टी, अपने देस को बेहद करीब से जानने लगते हैं ।
किसी किसान के यहां जब गाय दुहकर आपके लिये ‘चाह’ (चाय) बनाया जाता है, या किसी के घर आप भरी दुपहरी में पहुँचते हैं तो वो आपसे खाने के लिए पूछता नहीं है वरन बोलता है, “हाथ-पैर धो लीजिये, थाली लग गयी है ।”
बंद कमरे की आरामकुर्सी हो या कैंटीन-रेस्तरां के लज़ीज व्यंजन ऐसा सुकून इतना प्यार इतना सम्मान नहीं मिलता कहीं ।
जिंदगी जीने का असली मज़ा तो यहीं है, अपनी मिट्टी, अपने खेत और खेत की पगडंडियों पर बचपन को जीते हुए कुछ अच्छा कर गुजरना, कि जब कभी पीछे पलट के देखो एक साथ कई चेहरों पर मुस्कान दिखेगी । ऐसे होता है 56 इंच सीना ।
Recent Comments